पर्यावरण प्रदूषण निबंध
प्रस्तवना
धरती के प्राणी एवं वनस्पतियों को स्वस्थ व जीवित रहने के लिए हमारे पर्यावरण का स्वच्छ रहना बहुत जरुरी है किन्तु मानव प्रकृति का इस प्रकार से दोहन कर रहा है की हमारा पर्यावरण दूषित होता चला जा रहा है आज पर्यावरण भारत की ही नही बल्कि विश्व की एक गंभीर समस्या बन गया है इस समस्या से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक प्रयास किये जा रहे है हमारे पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इंद्रागाँधी ने कहा था यह बड़े दुःख की बात है की एक के बाद दूसरे देश में विकाश का तात्पर्य प्रकृति का विनाश समझा जाने लगा है जनता को अच्छी विराशत से दूर किये बिना मानव जीवन में सुधर किया जा सकता है|
पर्यावरण प्रदूषण किसे कहते है
पर्यावरण 2 शब्द ‘परि’ एवं ‘आवरण’ से मिलकर बना है जिसमे परि का आशय है चारो ओर से तथा आवरण का अर्थ है ढका हुआ है अर्थात समस्त जीवधारियों तथा वनस्पतियों के चारो ओर का आवरण ही पर्यावरण है गिस्बर्ट के अनुसार ‘ पर्यावरण का तात्पर्य‘ प्रतेक उस देश से है| जो किसी तथ्य को चारो ओर से घेरे रहती है तथा उसे प्रतेक रूप में प्रभावित करती है सामान रूप में पर्यावरण की प्रकृति से समानता प्रदर्शित की जाती है जिसके अंतर्गत भौतिक घटकों तथा जैविक घटकों को सामिल किया जाता है|
मानव जीव जंतु एवं पेड़ पौधे सभी को स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छ पर्यावरण की आवश्यकता होती है लेकिन जब पर्यावरण या मानवीय कारणों से पर्यावरणीय संरचना में कुछ तत्व प्रवेश कर गए है जिस कारण उसे पर्यावरण प्रदूषण की संज्ञा दी जाती है यह भूमि, वायु , ध्वनि एवं जल के रूप में मानव जीवन को प्रभावित करते है|
सामान्य रूप से पर्यावरण प्रदूषण को निम्न भागो में विभाजित किया गया है जो इस प्रकार है –
पर्यावरण प्रदूषण निबंध
- वायु प्रदूषण
- जल प्रदूषण
- ध्वनी प्रदूषण
- भूमि/मृदा प्रदूषण
- रेडियोधर्मी प्रदूषण
1 वायु प्रदूषण निबंध
जब मानवीय या प्राक्रतिक कारणों से वायुमंडल की गैसो की निशित मात्रा और अनुपात में अवांछनीय परिवर्तन हो जाता है या वायु में इन गैसों के अतिरिक्त कुछ अन्य विषैले पदार्थ मिल जाते है तो यह वायु प्रदूषण कहलाता है|
वायु प्रदूषण के कारण
- वायु प्रदूषण प्राक्रतिक एवं मानवीव कारको द्वारा होता है प्राक्रतिक कारको में ज्वालामुखी विस्फोट जंगल की आग पशुओं द्वारा जुगाली की क्रिया, कोहरा, परागकण ,उल्कापात, आदि है परन्तु प्राक्रतिक स्त्रोतों से उत्पन्न वायु प्रदुषण कम खतरनाक होता है क्योकि प्रक्रति में स्व नियंत्रण की क्षमता होती है|
- मानव क्रियाकलापों में वन्नोमूलन,मोटर वाहनों का अंधाधुंध प्रयोग लकड़ी कोयला एवं उपले जैसे पदार्थो को जलाने से उत्पन्न धुआ कारखानों से निकलने वाला धुआं,ताप विधुतगृह कृषि कार्य खनन रासायनिक पदार्थ आदि का प्रयोग तथा आतिशबाजी द्वारा वायु प्रदूषण में वृधि हो रही है|
- विकसित और विकाशशील देशों में विकाश एवं अन्य मानको में आगे निकलने की चाहत ने पर्यावरण को इतना अधिक प्रदूषित कर दिया है की आज वैश्विक परिदृश्य में जलवायु परिवर्तन ,भूमंडलीय तपन तथा ओजोन क्षरण की समस्या ने मानव के अस्तित्व में संकट खड़ा कर दिया है|
वायु प्रदूषण के प्रभाव
- वातावरण में अवांछित गैसों की उपस्थिति से मनुष्य पशु तथा पक्षियों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है इसमे दमा ,अंधापन,आदि बीमारियाँ पैदा होती है w.h.o के अनुसार हर साल 2 से 4 लाख लोगों को मौत का सामना करना परता है|
- दुनिया भर की बीमारीयों पर नजर रखने वाली संस्था ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिसीज के अनसुर भारत में वायु से जुडी बीमारियाँ बड़ी तेजी से फ़ैल रही है इस पर जल्दी धयान न दिया गया तो इसके भयंकर परिणाम हो सकते है |
- वायु प्रदूषण के कारण अम्ल वर्षा का खतरा बढ़ जाता है क्योकि अम्ल वर्षा के जल में सल्फर डाई एक्साइड नाइट्रोजन डाई एक्साइड आदि जहरीली गैस के घुलने की सम्भावना बढ़ जाती है जिससे पेड़ पौधे भवन और इमारतों को नुकसान पहुचता है |
वायु प्रदूषण के नियंत्रण के उपाय
- प्रदूषण के उपाय के लिए स्वचालित वाहनों में प्राकृतिक गैस (C N G) का प्रयोग किया जाय वायु प्रदूषण की जाँच के लिए सर्वेक्षण और अध्यन किया जाय प्रदूषण के लिए नियमित रूप से मानीटरिंग की जाय|
- उर्जा के वैकल्पिक स्रोत के प्रयोग को बढाया जाय जैसे- ज्वारीय उर्जा, जैव उर्जा, पवन उर्जा ,सौर उर्जा ,जल विधुत उर्जा, आदि |
- स्वचालित वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए गाड़ी में स्क्र्वर लगाया जाय फैक्ट्रीयों की चिमनी में बैग फ़िल्टर लगा होना चाहिए जिससे 50 मिक्रोमीटर से कम व्यास वाले कणकीय पदार्थ अलग किये जा सके|
- डीजल की गाड़ियों में अतिसूक्ष्म मात्रा में सल्फर युक्त डीजल (ULSD) या हरित डीजल का प्रयोग किया जाय इसके अतिरिक्त वाहनों के लिए कोलबैड मीथेन ,बैयोडीजल,आदि का प्रयोग किया जा सकता है|
वायु प्रदूषण के नियंत्रण हेतु भारत सरकार के प्रयास
- औधोगिक इकाई स्थापना करने से पहले बोर्ड से अनुमति प्रमाण पत्र लेना|
- जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा अक्टूबर 2014 में वायु गुणवत्ता सूचकांक जारी किया गया , जिसका उदेश्य देश के प्रमुख शहरो में हवा की गुणवत्ता की निगरानी करना है |
- वायु गुणवत्ताकी जांच के लिए मोबाइल एप्प सेवा की शुरुआत करना |
- केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम 2016 के अंतर्गत केन्द्र सरकार ने 1 अप्रैल 2020 से पेट्रोल तथा डीजल वाहन के लिये BS -4 से सीधे BS-6 मानक अपनाने का फैसला किया है
- जनवरी 2018 में केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ग्रीन गुड डीड्स कार्यक्रम शुरु किया था ,इसके तहत आम लोगो में पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाने और इसके सरक्षण में उन्हें शामिल किया जाता है |
2 जल प्रदूषण निबंध
इसमें में अवांछनीय गैस ,द्रव्य या ठोस पदार्थ का मिलना ही जल प्रदूषण कहलाता है WHO के अनुसार प्राकृतिक तथा अन्य स्रोतों के कारण जल प्रदूषित होता है तथा यह एक सामान्य स्तर से कम ऑक्सीजन के कारण जीवों के लिए हानिकारक होता है इससे संक्रामक रोगों का फैलाव बढ़ जाता है |
जल प्रदूषण के प्रमुख कारण
- औधोगिक कचरों के द्वारा जल प्रदूषण होता है
- कारखानों से निकले हानिकारक रासायनिक पदार्थ से जल प्रदूषित होता है
- बंदरगाह से रिसे पेट्रोलियम पदार्थ एवं तरल द्रव पदार्थ से जल प्रदूषण होता है
- शहर नगरों तथा बस्तियों से निकले मल मूत्र तथा ढोस कचरे इत्यादि से जल प्रदूषण होता है
- पशु पालन उधमो एवं कूबड़ खानों से उत्त्पन्न कचरों से जल प्रदूषण होता है
- कृषि द्वारा जैविक अपशिष्ट उर्वको और कीटनाशकों के अवशेष से जल प्रदूषण होता है
- परमाणु ग्रहों से उत्पन्न रेडियोधर्मी पदार्थ का गिरना जल प्रदूषण कहलाता है
- मृदा अपरदन से खनिजो के लीचिंग से भी जल प्रदूषण होता है
जल प्रदूषण के प्रभाव
- इस प्रदूषण के कारण मलेरिया,हैजा ,पीलिया ,पेचिस ,त्वचा रोग,फेफड़ा खराब होना आदि हानिकारक रोग पैदा होते है
- जल प्रदूषण से भूमि की उर्वरा शक्ति प्रभावित होती है तथा जलीय जीवो एवं पौधों पर प्रभाव पड़ता है
- विश्व बैंक द्वारा जारी एक रिपोर्ट क्वालिटी अननोन: द इनविजिबल बाटर क्राईसिस 2019 में यह कहा गया है की जल प्रदूषण कुछ देशो की आर्थिक विकाश दर को एक तिहाई कम कर रहा है
जल प्रदूषण के नियंत्रण
- प्रदूषण के नियंत्रण के लिए लोगो को जागरूक करना चाहिए इस कार्य में सरकार के साथ-साथ स्वयं सेवा संगठनों की मदद ली जानी चाहिए|
- आम जनता को घरेलू अपशिष्ट प्रबंध में दक्ष करना होगा|
- अधोगिक प्रतिस्ठानो के लिए नियम बनाय जाय जिससे कारखानों से निकले अपशिष्ट को बिना सोधित किये नदियों तथा तालाबों में न बहाया करें|
- नगरमहा पालिका के लिए सीवर सोधन सयंत्रो का इंतजाम होना चाहिए तथा सरकार को प्रदूषण नियंत्रण के लिए एक सफल योजना का ऐलान करना चाहिए|
जल प्रदूषण के नियंत्रण हेतु भारत सरकार के प्रयास
- प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए भारत सरकार ने 1974 और 1977 में जल प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम पारित किया है
- गंगा नदी के प्रदूषण को समाप्त करने के लिए केन्द्रीय गंगा प्राधिकरण का वर्ष 1985 में गठन किया गया था इस प्राधिकरण का नाम बदल कर संरक्षण प्राधिकरण कर दिया गया |
- जून 2014 में नमामि गंगे परियोजना के अंतर्गत गंगा नदी को स्वच्छ करने का अभियान चलाया गया है इस परियोजना के अंतर्गत नदी के प्रदूषण को कम करने के साथ -साथ प्रदूषण को रोकने ,नदियों में गिरने वाले कचरे के सोधन तथा उस नदी से दूसरी ओर मोड़ने जैसा कदम उठाया जा रहा है इसके अतिरिक्त इसमें कचरा और सीवेज परिशोधन के लिए नई तकनीक की व्यवस्था की जा रही है |
- बायो टायलेट में बायो -डायजेस्टर का प्रयोग किया जा रहा है इसके लिए शौचालय के गंदे जल या मानव अपशिष्ट से निपटने के लिए मल जल प्राणाली की आवश्यकता नहीं पड़ती है|
3 ध्वनी प्रदूषण निबंध
किसी भी वस्तु में सामान्य आवाज को ध्वनी कहते है ध्वनी की तीव्रता जब एक सीमा से अधिक हो जाती है तो वह मानव तथा जीव जन्तुओं के लिए घातक हो जाता है इसी को ध्वनी प्रदूषण कहते है ध्वनी की तीव्रता को डेसीबल में मापते है एक सामान्य व्यक्ति के लिए 50 डेसिबल तीव्रता की ध्वनी सुनना सामान्य है 80 डेसिबल से अधिक तीव्रता की ध्वनी शोर कही जाती है |
ध्वनी प्रदूषण के कारण
- कारखानों की मशीन द्वरा उत्पन्न शोर ध्वनी प्रदूषण का मुख्य कारण है|
- परिवहन के साधन भी ध्वनी प्रदूषण के बड़े स्रोत है इसमें रेल परिवहन,वायु परिवहन,तथा मोटर वाहन भी ध्वनी प्रदूषण होता है |
- मनोरंजन के अनेक साधनों से ध्वनी प्रदूषण होता है टेलीविजन लाउडस्पीकर से भी धुँनी प्रदूषण होता है जो की ध्वनी प्रदूषण के मुख्य कारण है इसके अतिरिक्त बादलों का गर्जना ,बिजली ,का कड़कना भूकंप की ध्वनी ,तूफानी हवायें आदि से ध्वनी प्रदूषण होता है |
ध्वनी प्रदूषण के प्रभाव
- ध्वनी प्रदूषण का सबसे अधिक प्रभाव कानों पर पड़ता है जो स्थायी या अस्थायी रूप से प्रभावित करते है |
- उच्च ध्वनी से मानव में उच्च रक्तचाप परत का अल्सर चिडचिडा पन दोष पैदा होता है शोर के कारण चिन्ता और तनाव जैसी भावात्मक प्रभाव पैदा होता है ध्यान केन्द्रित करने की अस्मर्थता और मानसिक थकान शोर के महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रभाव है तीव्र ध्वनी में लगातार काम करने से मनुष्य बहरा भी हो सकता है |
- तीव्र ध्वनी कान के पर्दों को भी नुकसान पहुंचा सकते है |
ध्वनी प्रदूषण के नियंत्रण
- ध्वनी स्रोतों में शोर शमन यंत्रो का प्रयोग करके भारी मात्रा में वृक्षारोपर कर ध्वनी प्रदूषण का प्रभाव कम किया जा सकता है |
- तीव्र ध्वनी को रोकना के लिए ग्रीन बेल्ट का निर्माण करके भी ध्वनी प्रदूषण को रोका जा सकता है|
- ध्वनी ग्रहण करने वाले व्यक्ति को सुरक्षा उपकरण का उपयोग करना चाहिए |
- ग्रीन मफलर तकनीक के अन्तर्गत अधिक आबादी वाले या ध्वनी प्रदूषण वाले क्षेत्रोँ तथा सड़कों के किनारे वृक्षों को लगाने से ध्वनी प्रदूषण कम होता है |
- ध्वनी तरंगो के संचारण पथ को नियन्त्रित करके भी ध्वनी प्रदूषण कम किया जा सकता है
- लाउडस्पीकर एवं डीजे से भी भारी शोर उत्पन्न होता है कानून द्वारा समझा बुझा कर ध्वनी प्रदूषण कम किया जा सकता है |
ध्वनी प्रदूषण के नियंत्रण हेतु भारत सरकार के प्रयास
- प्रदूषण के नियंत्रण के सन्दर्भ में भारत में अलग से अधिनियम का कोई प्रावधान नहीं है | तथा ध्वनी प्रदूषण को वायु अधिनियम 1981 में संशोधन के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है |
- ध्वनी प्रदूषण के नियंत्रण के लिए सरकार को कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है |
- भारतीय दण्ड संहिता IPAC 1860 धारा 268, 291 के अन्तर्गत ध्वनी प्रदूषण को अपराध की श्रेणी में रखने हेतु दण्ड का प्रावधान किया गया है
- सरकार ने ध्वनी प्रदूषण को रोकने के लिए प्रदूषण नियम 2000 को अधिनियम किया है जिसमे 5 लाउड स्पीकर से अधिक का प्रावधान नहीं है |
- ध्वनी प्रदूषण के संबंध मेंसुप्रीमकोर्ट का 2005 में फैसला आया | इस फैसले में अदालत ने सार्वजनिक स्थानों पर रात 10 बजे से 6 बजे की बीच लाउडस्पीकर के प्रयोग पर प्रतिबंद लगा दिया है |
4 मृदा प्रदूषण निबंध
जब मानव या प्रकृति के द्वारा मृदा की गुणवत्ता में हास होता है, तो उसे मृदा प्रदूषण कहते है | भूमि प्रदूषण मनुष्यों की वभिन्न क्रियाओं ; जैसे – अपशिष्ट का जमाव, कृषि रसायन का उपयोग, खनन आपरेशन तथा नगरीकरण का परिणाम है |
मृदा प्रदूषण के कारण
- मृदा प्रदूषण मृदा में रहने वाले सूक्ष्म जीवों में कमी तथा तापमान में अत्यधिक उतार चढाव मृदा प्रदूषण के कारण है |
- शहरीकरण तथा उधोगों से निकले अपशिष्ट, जिन्हें भूमि पर बहा दिया जाता है जैसे-अम्ल, क्षार, धातु, कीटनाशक आदि है |
- लवणयुक्त भूमिगत जल वाले क्षेत्र में सिंचाई करने से उपरी मृदा अनुउपजाऊ हो जाती है |
- कृषि में कीटनाशक खरपतवारनाशी के प्रयोग से भी बढती है साथ ही साथ मृदा में अपशिष्ट पदार्थ तथा कूड़ा करकट मिलाने से भी मृदा प्रदूषित होती है
- औधोगिक अपशिष्ट जल नगरीय अपशिष्ट तथा अस्पतालों के अपशिष्ट को फेंकने से भूमि प्रदूषण हो जाता है औधोगिक ठोस अपशिष्ट तथा कीचड़ जहरीले कार्बनिक, अकार्बनिक, रासायनिक मिश्रण एवं भारी धातु के द्वारा मृदा को प्रदूषित करते है |
- इसके अतिरिक्त विव्रत्खनन से उपरी भूमि का पूरी तरह नुकसान होता है तथा पूरा क्षेत्र जहरीले धातु एवं रसायन से संक्रमित हो जाता है
मृदा प्रदूषण के प्रभाव
- मृदा प्रदूषण प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से मानव जीव जंतु तथा वनस्पतियों को प्रभावित करता है मृदा प्रदूषण से मिट्टी के मौलिक गुडो में हास होता है इसकी उत्त्पादन छमता कम हो जाती है जिससे फसलो एवं वनस्पतियों का विकास कम हो जाता है
- रासायनिक प्रदूषण मिट्टी में मिलकर वनस्पतियों एवं फसलों को प्रभावित करते है इसका प्रभाव जीव जंतु एवं मनुष्य पर पड़ता है जिससे ये प्रभावित होते है
- कीटनाशको के प्रयोग से मृदा के भौतिक रासायनिक तथा जैविक गुड़ो का हास होता है जिसमे मृदा की उर्वरक क्षमता कम हो जाती है
- मृदा प्रदूषण आहार श्रंखला के माध्यम से उच्च पोषण स्तर तक अपना नकारात्मक प्रभाव डालता है इससे मृदा में उपस्थित रासायनिक तत्व पौधों/फसलों के माध्यम से मानव शरीर में पहुच कर रोग उत्पन्न करते है |
मृदा प्रदूषण नियंत्रण के उपाय
- खाद के रूप में जैविक खाद जैसे -गोबर,पत्ती की खाद, आदि का अधिक मात्र में व रासायनिक खाद कम मात्रा में प्रयोग किया जाना चाहिए |
- औधोगिक अपशिष्टो को बिना उचित उपाय के व घातक रासायनों को छाने बिना भूमि पर बहाने पर प्रतिबंध हो
- शहरी कचरे का यंत्रो द्वारा निश्तारण करके निस्तारित कचरे को विधुत उत्पाद व खाद उत्पाद आदि में प्रयोग किया जाय |
- कृषि उत्पादन के लिए कम से कम कीटनाशकों का प्रयोग किया जाय
- वनों की कटाई पर प्रतिबन्ध लगा कर मृदा अपरदन तथा इसके पोषक तत्व को सुरक्षित करने के लिए मृदा संरक्षण प्रणाली को अपनाया जाय |
5 रेडियोधर्मी प्रदूषण निबंध
रेडियोएक्टिव पदार्थो से होने वाला विकिरण रेडियोधर्मी प्रदूषण कहलाता है रेडिओएक्टिव पदार्थो से स्वतः विकिरण निकलता रहता है जैसे-उरेनियम,थोरियम,प्लूटोनियम आदि रेडियोधर्मी प्रदूषण के मापने की इकाई बेकुरल है रेडियोधर्मी प्रदूषण के पदार्थ स्वयं में प्रदूषक एवं प्रदूषण दोनों होते है भारत में रेडियोधर्मी प्रदूषण सबसे अधिक केरल में होता है|
रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण
- यह प्रदूषण मुख्यतः परमाणु रियेक्टरो से होने वाले रिसाव प्लुतेनियम तथा थोरियम के शुद्दीकरण नाभिकीय प्रयोग औषधि विज्ञान रेडियोधर्मी पदार्थ के उत्खनन व परमाणु बमों के विस्फोट द्वारा होता है इसके अतिरिक्त मानव द्वारा विविध उदेश्यों के लिए प्रयोग में ले जाने वाले कोबाल्ट-60, कार्बन-14, सीजियम-137 आदि द्वारा भी नाभिकीय प्रदूषण होता है|
- सूर्य की किरणों के कारण तथा प्रथ्वी के गर्भ में छिपे रेडियोधर्मी पदार्थ जैसे-रेडियम -224, उरेनियम-238, तथा पोटेशियम-40 के कारण जो प्रदूषण होता है वह प्रक्रति जनित प्रदूषण होता है इसकी तीव्रता कम होने के कारण यह जीवधारियों को कोई विशेष हानि नहीं पंहुचता |
रेडियोधर्मी प्रदूषण के प्रभाव
- रेडियोधर्मी विकिरण का प्रभाव कई हजार वर्ष तक रहता है सभी प्रदूषणों में सबसे अधिक घातक होता है इस प्रदूषण के कारण खतरनाक रोग जैसे-अस्थि कैंसर ,रुधिर कैंसर तथा क्षय रोग आदि हो जाता है|
- इस प्रदूषण के कारण जीव और गुणसूत्रों में हानिकारक उत्परिवर्तन हो जाता है बच्चो की गर्भाशय में ही म्रत्यु हो जाती है इस प्रदूषण का प्रभाव कई वर्षो में लकवे, गूंगापन, बहरापन आदि रूप में दिखाई देता है|
- वर्ष 1945 में जापान के शहर हीरोशिमा तथा नागासाकी पर अमेरिका ने परमाणु बम का विस्फोट कर इन दोनों शहरो को नष्ट कर दिया आज 75 वर्ष के बाद भी इसका प्रभाव देखा जा सकता है|
- इस प्रदूषण का सर्वाधिक प्रभाव युरेनियम खानों में श्रमिक और रेडियम परत के पेंटरो पर सबसे ज्यादा पड़ता है|
- वर्ष 2011 में जापान के फुकुशिमा परमाणु सयन्त्र में रेडियोधर्मी पदार्थो के रिसाव के कारण आस पास के इलाके को खाली करवाना पड़ा था |
रेडियोधर्मी प्रदूषण के नियंत्रण हेतु उपाय
- परमाणु अस्त्रों का उत्पादन व प्रयोग प्रतिबन्ध होना चाहिये|
- रेडियोएक्टिव अपशिष्ट को तर्कसंगत एवं सही ढंग से निर्गत किया जाना चाहिये |मानव प्रयोग के उपकरणों को रेडियोधर्मिता से मुक्त किया जाना चाहिये |
- चश्मा पहनकर uv-विकिरणों से बचना चाहिये| जहाँ पर नाभिकीय संयंत्र सम्बन्धी काम किये जाते है वहाँ काम जल्दी ख़तम होना चाहिए जैसे-अधिक व्यक्ति व समय कम जिससे प्रति व्यक्ति उद्धभासन कम से कम हो
- रिएक्टरो से रिसाव रेडियो एक्टिवे ईधन तथा आइसोपोटो के परिवहन तथा उपयोग से लापरवाही बरते आदि पर प्रतिबन्ध होना चाहिए
- आण्विक रिएक्टर की स्थापना मानव आबादी से बहुत दूर होना चाहिए|
निष्कर्ष
पर्यावरण प्रदूषण के सन्दर्भ में उपयुक्त विवेचन से स्पष्ट है की पर्यावरणीय प्रदूषण में प्राकृतिक कारको के साथ-साथ मानवीय कारको की भी भूमिका होती है प्राक्रतिक कारको की अपनी एक स्वनिर्धारित सीमा है जसमे मानव हस्तछेप नही कर सकता ,किन्तु मानव जो पर्यावरण को सदैव उपयोगितावादी द्रष्टिकोण से देखता आया है लेकिन मानव सोच में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है यदि व्यापक द्रष्टिकोण से देखा जाय तो पर्यावरण को हानि पंहुचा कर हम खुद को नष्ट कर रहें है|
हमें गम्भीरतापूर्वक इस तथ्य पर विचार करना चाहिए की हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या दे रहें है इसलिए हमें ऐसा उपाय सोचना होगा की मानव जीवन की गुणवत्ता की रक्षा करते हुए पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा जाय क्योकि मनुष्य इसका हिस्सा भी है और उपभोक्ता भी| अतः पर्यावरण का शोषण और दोहन मानव अधिकार को अस्थापित करने में बाधक बन जाता है अतः पर्यावरण संरक्षण के द्वारा हम मनुष्य के अस्तित्व और जीवन की रक्षा कर सकते है पर्यावरण की गुणवत्ता पर रिचर्ड रोजर्स का कथन है कि
“अगर हम पर्यावरण की गुणवत्ता सुधारना चाहते है
तो एकमात्र रास्ता है की हर एक व्यक्ति को इस अभियान से जोड़ा जाय |”
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